Tuesday, September 20, 2005

मैं

कैसा ये एहसास है
बडी अजीब सी प्यास है
दिमाग है बेचैन बहुत पर
दिल में अलग विश्वास है..

है कुछ तो सीखा मैंने
पर करूं कैसे बयां
कभी है कितनी सच्ची कितनी अपनी,
और कभी ये कायनात बकवास है...

होगा क्या वजूद मेरा वक्त के समंदर में
ढूंढा बाहर जवाब ना मिला तो झांका अंदर में
मिल जाऊँ खुद को मैं शायद कभी कहीं
दुनिया मैं हर किसी का शायद यही प्रयास है...

हर इन्सां है इक शीशा और दुनिया शीशमहल
मिला जिससे भी मिला खुद से लगा ये पल दो पल
ऐसे में क्या दोस्ती क्या दुश्मनी के माने
हूँ सबमें मैं मौजूद अलग बस लिबास है...

1 Comments:

Blogger Jeet said...

बहुत अच्छे। ऐसे ही लिखते रहो सप्रे। :-)

7:41 PM, September 20, 2005  

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