Thursday, June 28, 2007

एक होने की पहली शर्त

कभी तीर में, मझधार में
इस दुनिया के व्यापार में
उदासी में या त्यौहार में
पतझड में या कि बहार में
इस दुनिया उस संसार में
जानी पहचानी पुकार में
या अंजानी झंकार में
कुछ पाने की दरकार में
या यूँ ही फिर बेकार में
हो सकता है मैं याद आऊँ
हो सकता है मैं याद आऊँ

तब याद मुझे तुम मत करना
जो कर रही हो करती रहना
और भूल मुझे भी मत जाना
जो कर रही हो करती रहना


क्योंकि -
खुद को ना भूले है कोई
ना याद करे खुद की कोई
बस इतनी ही समझ में मेरी है
एक होने की शर्त ये पहली है

1 Comments:

Blogger Jeet said...

अच्छी कविता है जी :-)
मुझे "जानी पहचानी पुकार में, या अंजानी झंकार में" बहुत पसन्द अाया :-)

4:24 PM, June 29, 2007  

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