कुछ शेर, फुरसत के
नज़रें तो थी हमारी भी चाँद तारों पर,
ज़मीं छोडना मगर दिल को ग़वारा ना हुआ
थी हाल-ए-दिल की ख़बर उन्हे, पर लब रहे ख़ामोश ही
होगी कुछ तो मजबूरी, आँखों से भी इशारा ना हुआ
यूँ तो हैं यार अपने, जहां के हर कोने मे
है सीने के किसी कोने में दिल, जो कभी हमारा ना हुआ
देते हैं दिल भी अब देखभाल कर, दुनियादारी से
मासूम था पहला प्यार ही, वो दुबारा ना हुआ
कोशिश तो की वक्त ने बहुत कि रोक ले राह
है बात कुछ तो दिल में, कभी बेचारा ना हुआ
बावजूद सरपरस्तों के कुछ अभागे यतीम हैं
है यकीं खुदा पे जिसको कभी बेसहारा ना हुआ
दिल की लगन ही पहुँचाएगी मंज़िल पे एक रोज़
सच है कि मेहनत का पसीना कभी ख़ारा ना हुआ
3 Comments:
Hey ashish, good one yaar....
bahut achha likha hai......:-)
keep it up...
सप्रे ! य़े लिख रहे थे क्या मिलने से पेहले? अच्छा है :)
Anusha: Thanx...
Jeet:नहीं यार... लिख तो कुछ और रहा था... २-३ दिन में अपने दूसरे blog पर post करता हूँ.... aur haan... thanx :)
Post a Comment
<< Home