कुँवर बेचैन की दो कविताएँ
जिंदगी की राहों में खुशबुऒं के घर रखना
आँख में नई मंजिल पांव में सफर रखना
सिर्फ छाँव में रहकर फूल भी नहीं खिलते
चांदनी से मिलकर भी धूप की खबर रखना
लोग जन्म लेते ही पंख काट देते हैं
है बहुत बहुत मुश्किल बाजु़ऒं में पर रखना
हमने लोहे को गलाकर जो खिलौने ढाले
उनको हथियार बनाने पर तुली है दुनिया
नन्हे बच्चों से कुँवर छीन के भोला बचपन
उनको होशियार बनाने पर तुली है दुनिया
1 Comments:
फूल को खार बनाने पे तुली है दुनिया
सबको बीमार बनाने पे तुली है दुनिया
मैं महकती हुई मिट्टी हूँ किसी आँगन की
मुझको दीवार बनाने पे तुली है दुनिया
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