Sunday, January 06, 2008

ये ज़रुरी तो नहीं

आज musicindiaonline पर जगजीत सिंह की ग़जलें सुनते हुए एक ग़जल इतनी पसंद आयी कि उसे यहां आपके लिए post कर रहा हूँ। आपको ग़जल के शायर पता हों तो बताइये और ना सुनी हो तो इस website पर जाकर जरूर सुनिए।

उम्र जल्वों में बसर हो ये जरूरी तो नहीं
हर शब-ए-ग़म की सहर हो ये जरूरी तो नहीं

चश्मे स़ाकी से पियो या लब-ए-सागर से पियो
बेख़ुदी आठों पहर हो ये जरूरी तो नहीं

नींद तो दर्द के बिस्तर पे भी आ सकती है
उनके आगोश़ में सर हो ये जरूरी तो नहीं

शेख़ करता तो है मस्जिद में ख़ुदा को सजदे
उसके सजदों में असर हो ये जरूरी तो नहीं

सबकी नज़रों में हो सा़की ये ज़रूरी है मगर
सब पे सा़की की नज़र हो ये ज़रुरी तो नहीं

2 Comments:

Blogger Jeet said...

बढ़िया है जी :-)

10:02 AM, January 07, 2008  
Blogger With Malice said...

nice one:)

12:23 AM, July 09, 2009  

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