शिकारी आएगा, जाल बिछाएगा, हमें जाल में फंसना नहीं
आज एक ई-मेल पढते हुए बचपन में सुनी हुई कहानी याद आ गई। मेल में क्या था और कहानी क्यूँ याद आई यह तो बाद में बताता हूँ, पहले कहानी सुन लीजिए।
बात काफी पुरानी है। एक बार एक महात्मा जंगल से गुजर रहे थे कि उन्हें किसी तोते की आवाज़ सुनाई दी। उन्हे लगा जैसे तोता किसी मुसीबत में फंसा है और मदद के लिए पुकार रहा है। अब वो पुकार सुन के भी सहायता के लिए ना जाएँ तो महात्मा किस बात के? आवाज़ का पीछा करते करते वो तोते तक पहुंच गए।
तोता किसी बहेलिए के बिछाए जाल में फंसा हुआ छटपटा रहा था। महात्मा जी ने उसे जाल से छुडा तो दिया लेकिन उन्हें लगा कि ये तोता फिर से जाल में फंस सकता है, इसलिए कुछ दिनों के लिए उसे अपने पास रख लिया और उसे सिखाते रहे "शिकारी आएगा, जाल बिछाएगा, हमें जाल में फंसना नहीं"। कुछ ही दिनों में तोते ने अच्छे से सीख लिया। तब महात्मा ने उसे छोड दिया।
कुछ महीनों बाद महात्मा उसी जंगल से गुजर रहे थे तो उन्हे बहुत सारे तोतों की आवाज़ सुनाई दी "शिकारी आएगा, जाल बिछाएगा, हमें जाल में फंसना नहीं"। महात्मा जी बडे खुश हुए। उन्हें इस बात से बहुत संतुष्टि हुई कि उनके छोटे से प्रयत्न से सारा का सारा झुंड अब शिकारियों से बचा रहेगा। यही सोचकर वो आवाजों की दिशा में बढे। लेकिन जल्द ही उनकी संतुष्टि दुःख में बदल गई जब उन्होंने देखा कि सारे के सारे तोते जाल में फंसे हुए हैं और बोल रहे हैं "शिकारी आएगा, जाल बिछाएगा, हमें जाल में फंसना नहीं"।
तो अब सवाल ये उठता है कि वो कौनसी ई-मेल थी जिसने ये बरसों पुरानी कहानी याद दिला दी?
ई-मेल में बडे ही विस्तार से बताया था कि जिंदगी में खुश कैसे रहा जाए। इतने सारे काम के बोझ और तनावों के बीच में आराम कैसे ढूंढा जाए। कुछ सटीक टिप्पणियाँ (आप चाहें तो इन्हें Punch Lines कह सकते हैं) भी की गईं थीं जैसेः
Worrying has become our habit. That's why we are not happy.
Pain is inevitable, but suffering is optional.
Problems are Purposeful Roadblocks Offering Beneficial Lessons (to) Enhance Mental Strength.
Eyes provide sight. Heart provides insight.
Success is a measure as decided by others. Satisfaction is a measure as decided by you.
ऐसी कई ई-मेल हर रोज हमें आती हैं और हर रोज कुछ देर के लिए (शायद?) हम बदल जाते हैं । लेकिन फिर इसे किसी दोस्त को forward करके अपने पुराने ढर्रे पर लौट आते हैं। उसके बाद फिर वही काम का बोझ, वही तनाव, वही खीझ।
अब आप ही बताइए कि हममें और उन तोतों में क्या अंतर हैं?
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