दायरा
एक अज्ञात कवि की यह रचना बहुत अच्छी लगी. इसलिए यहाँ आपके लिए प्रस्तुत कर रहा हूँ.
तैरते तिनके झुलाती धार है
डूबता कंकड़ बहुत लाचार है
कौन भारी और हल्का कौन है
तौलना ही लहर का व्यापार है
एक काली डोर मैं अम्बर घिरा
बन्धनों में जीर्ण है सारी धरा
पांखुरी ने तो बहुत बाँधा मगर
गंध ने माना नहीं यह दायरा
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