खामोश सा अफसाना
काफी दिन हो गए यहां कुछ लिखे हुए. गुलज़ार का एक गाना सुना दो दिन पहिले रेडियो पर, इत्तिफाक से एक ही दिन में दो बार. वही गाना पोस्ट कर रहा हूँ. गुलज़ार के हर गाने समझ में आ जाएँ, जरूरी नहीं है. लेकिन कुछ तो कशिश जरूर होती है, अब वो चाहे शब्दों में हो, शब्दों के तालमेल में हो, या फिर उनके अर्थ में. शायद गानों का पूरी तरह ना समझ में आना ही एक विशेषता है जो बार-बार गाने सुनने पर मजबूर करती है. मुझे लगता है कि गुलज़ार के गानों की सफलता का बहुत बडा कारण उनका संगीत भी है. पंचम दा और गुलज़ार हों तो बस, कुछ कहने की जरूरत ही नहीं है. ये गाना भी उन दोनों का ही है, फिल्म है - लिबास
खामोश सा अफसाना, पानी से लिखा होता
ना तुमने कहा होता, ना हमने सुना होता
दिल की बात ना पूछो, दिल तो आता रहेगा,
दिल बहकाता रहा है, दिल बहकाता रहेगा,
दिल को, तुमने, कुछ समझाया होता
खामोश सा अफसाना, पानी से लिखा होता
ना तुमने कहा होता, ना हमने सुना होता
सहमे से रहते हैं, जब ये दिन ढलता है,
एक दिया बुझता है, एक दिया जलता है,
तुमने, कोई तो, दीप जलाया होता
खामोश सा अफसाना, पानी से लिखा होता
ना तुमने कहा होता, ना हमने सुना होता
कितने साहिल ढूंढे, कोई ना सामने आया
जब मझधार में डूबे, साहिल थामने आया
तुमने, साहिल को, पहले बिछाया होता
खामोश सा अफसाना, पानी से लिखा होता
ना तुमने कहा होता, ना हमने सुना होता.