Saturday, October 22, 2005

बस दो ही लफ़्ज

पिंजरेनुमा खिडकी से बाहर झांकती आँखें बडी अच्छी लगती हैं
उनमें स्याह-सफेद बादल की परछाइयां बडी सच्ची लगती हैं
है ख्वाबों की चमक उनमें पर खुशबू से जरा कच्ची लगती हैं
उम्मीदें और सपने, बस दो ही लफ़्ज हैं जो जिंदगी को बनाते हैं

किनारे पर आती लहरें सागर पार चलने का निमंत्रण है
सितारों से आती हर किरण आकाश छू लेने का आमंत्रण है
चल दो मंजिल की तरफ क्यों फिज़ूल का नियंत्रण है
हौसला और विश्वास, बस दो ही लफ़्ज हैं जो जिंदगी को चलाते हैं

बन के टूटना बिखरना, बिखर के बनना इंसान की फितरत है
मिले जो यूँ ही खैरात में, मुझे नागवार वो शोहरत है
हर टूटे हुए इंसान को फिर इक कोशिश की जरुरत है
लगन और मेहनत, बस दो ही लफ़्ज हैं जो जिंदगी को बढाते हैं

बच्चों के बीच रहकर इंसान बदल जाता है
हर मासूम मुस्कान में आने वाला कल मुस्कुराता है
दुनिया का भविष्य बडा उज्जवल नजर आता है
सच्चाई और इंसानियत, बस दो ही लफ़्ज हैं जो जिंदगी को चमकाते हैं

है प्यार जिसके दिल में उसे सारी दुनिया अज़ीज़ है
है इंतजार आँखों में फिर भी कोई दिल के करीब है
करो समझने की कोशिश तो ये सब कुछ अजीब है
प्यार और बस प्यार, एक ही लफ़्ज हैं जिससे जिंदगी जिन्दा है

Wednesday, October 12, 2005

विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएँ

नई सुबह

नई सुबह फिर आई है
कुछ नए संदेशे लाई है
नई सुबह फिर आई है

नव रवि की ये नवीन किरणें
नव प्रभात की मंगल किरणें
कुछ बादल के परे बुलाती
कुछ खिडकी तक आती किरणें
भरें प्राण सोए जीवन में
अब जग ने ली अंगडाई है
नई सुबह फिर आई है

जागे पंछी और गीत सुनाएँ
बौछारें बादल से आएँ
तितलियों से फिर रंग चुराकर
देखो इंन्द्रधनुष वो बनाएँ
दुनिया के इस रंगमंच पर
अदभुत तस्वीर बनाई है
नई सुबह फिर आई है

अब ना हो वो बीती बातें
शाम की दर्द भरी वो यादें
मुस्कुरा भी दो अब तुम दिल से
गुज़र गई वो काली रातें
बनाएंगे कल आज से बेहतर
दिल में उम्मीद जगाई है
नई सुबह फिर आई है

नई सुबह फिर आई है
कुछ नए संदेशे लाई है
नई सुबह फिर आई है

Monday, October 03, 2005

दो शेर

कुछ दिनों पहले अपनी डायरी के पन्ने पलटते हुए बशीर बद्र के ये दो शेर पढे। आप भी सुनिए

सब हवाएँ ले गया मेरे समंदर की कोई
और मुझको एक कश्ती बादबानी दे गया।
(बादबानी कश्ती = Sailboat)

कोई हाथ भी ना मिलाएगा जो गले मिलोगे तपाक से
ये हादसों का शहर है, ज़रा फ़ासले से मिला करो।