Saturday, May 13, 2006

एक शाम की हसरतें

आ जाओ तुम किसी शाम को बैठेंगे बतियाएंगे
नई शाम से नई सुबह तक सुनेंगे और सुनाएंगे
पंछियों के संग रेस लगाकर आसमां छूने जाएंगे
तितलियों के संग घूम-घूमकर खुशबू भर ले आएंगे
क्यों ढलता सूरज पश्चिम में, गौर जरा फरमाएंगे
फिर चाँद चाँदनी संग निकलकर क्षितिज तक हो आएंगे
हुआ क्या गुजरे इन सालों में सब तुमको बतलाएंगे
वो साथ गुजारे धुँधले लम्हे, फिर उनको चमकाएंगे
जो जीते हारे जो तुम बिन स्वाद तुम्हे भी चखाएंगे
चले अकेले जिन राहों पर कुछ तुमको भी घुमाएंगे
सबसे बचाकर गम रखा है, तुमसे कुछ ना छिपाएंगे
संग जहां के हंसते हैं, तुम संग रोएंगे रुलाएंगे
ना सोचा था तुमसे बिछङकर खुद को तनहा पाएंगे
ना सोचा जो तेज़ चले हम इतना आगे आ जाएंगे
लेकिन अब तुम जल्दी आना हम ज्यादा ना रुक पाएंगे
ऐ मेरे बचपन वापस आ, फिर से बच्चे बन जाएंगे
आ जाओ तुम किसी शाम को बैठेंगे बतियाएंगे
नई शाम से नई सुबह तक सुनेंगे और सुनाएंगे