Friday, January 06, 2006

कुछ शेर, फुरसत के

नज़रें तो थी हमारी भी चाँद तारों पर,
ज़मीं छोडना मगर दिल को ग़वारा ना हुआ

थी हाल-ए-दिल की ख़बर उन्हे, पर लब रहे ख़ामोश ही
होगी कुछ तो मजबूरी, आँखों से भी इशारा ना हुआ

यूँ तो हैं यार अपने, जहां के हर कोने मे
है सीने के किसी कोने में दिल, जो कभी हमारा ना हुआ

देते हैं दिल भी अब देखभाल कर, दुनियादारी से
मासूम था पहला प्यार ही, वो दुबारा ना हुआ

कोशिश तो की वक्त ने बहुत कि रोक ले राह
है बात कुछ तो दिल में, कभी बेचारा ना हुआ

बावजूद सरपरस्तों के कुछ अभागे यतीम हैं
है यकीं खुदा पे जिसको कभी बेसहारा ना हुआ

दिल की लगन ही पहुँचाएगी मंज़िल पे एक रोज़
सच है कि मेहनत का पसीना कभी ख़ारा ना हुआ